Sunday 30 June 2013

तम की चादर


तम की चादर ओढ़ सांझ ने ,
धीरे-धीरे पाँव पसारा
आँख  मिचौली खेल ज़रा सी ,,
तम उर में छिप गया उजाला 
पलकों में सिमटे ख्वाबों ने , 
थोड़ी सी लेकर अंगड़ाई 
अभिनन्दन करके निद्रा का, 
सीमा  अपनी और बढाई
समां गए सपने अंखियों में, 
पलक लगे ढलके-ढलके
लोरी भी गा रही ख़ामोशी,, 
सहलाती हलके-हलके

Thursday 20 June 2013

ये भी एक सच !!!!!

केदारनाथ मंदिर के भीतर कोई नुकसान नहीं हुआ है। 
उत्तराखंड में बाढ़ की सबसे ज्यादा विभीषिका झेलने वाले केदारनाथ में मंदिर गर्भगृह को छोड़कर कुछ नहीं बचा है-------
एक कारण ये भी होगा कि इसका निर्माण वैज्ञानिक आधार पर हुआ होगा ..
भारत सालो पहले से ही तकनीकी क्षेत्र में बेहतर रहा है ..........पहले आज की तरह
भेड -चाल तो थी नहीं ......ना ही खाना-पूरी होती थी .......इमानदारी और निष्ठा से कार्य होता था ... ............बड़े ही नियोजित और सुचारू ढंग से निर्मित रहा होगा ये मंदिर .......
बल्कि जगह -जगह पहाडो पर सालों पुराने हमारे ये मंदिर अपनी विशेष निर्माण विधि से ही आज भी सुरक्षित हैं .............गुफाओं में कंदराओ में जहाँ -तहां मंदिर मिल जाते हैं और हम इनके आस -पास अवैध निर्माण कर इन्हें खोखला कर रहे हैं ..................और भयावह परिणाम भी झेल रहे हैं 

Thursday 13 June 2013

बरखा रानी करे निहाल ----------

1-बार -बार मेघा गरजाए 
धरा पुलक -पुलक हुई जाए 

2-अंधियारा छाया है दिन में 
 चमके बिजली दूर गगन में 

3-घुमड़ -घुमड़ कर मेघा आये 
पिहू पपीहा शोर मचाये 

४-पल-पल धरती दरक रही है 
बिन पानी के सिसक रही है 

५-गुनगुनाती मेघ मल्हार 
बरखा रानी खड़ी है द्वार 

६-झमझमाझम झम-झम , झम-झम 
भीग रहा है हर अंतर मन 

७-रिमझिम -रिमझिम बरस रहा है 
मन भी संग -संग भीग रहा है 

८-ताप सहे हो गए बेहाल 
बरखा रानी करे निहाल ....................

अतृप्त धरा

तपिश झेल चुकी धरती माता ,अन्दर तक आहत है 
दरक धरा का ह्रदय गया है ,सबके लिए घातक है 
ताप जेठ का खूब सहा है , स्वेद कृषक का खूब बहा है 
जार-जार रोती रहती है , ज़ख़्म ढके अपने  रहती है 
रोज़ -रोज़ विनती करते हैं ,इंद्र देव तुमको तकते हैं 
आसमान में बदली छायी , मुस्कान सभी मुख पर ले आई 
नन्ही बूंदे भी ले आओ , रिमझिम -रिमझिम गीत सुनाओ 
अतृप्त धरा का मन रीझेगा  , सराबोर अंतर भीगेगा 
आशीष हुलस -हुलस कर देगी , अन्न-धनं  से घर भर देगी 

Tuesday 11 June 2013

प्रिन्सिज़

प्रभलीन तुम्हे लेकर कई बार बड़ा भावुक हो जाती हूँ
शायद जानती हो तुम भी !!
पिछले दिनों तुम्हारी कुछ तस्वीरें देखी मुझे इतनी अच्छी लगी कि रुका ही नहीं गया मुझसे  प्रिन्सिज़ ...:)
तुम बहुत अच्छी लग रही हो उनमें ...और ये पंक्तियाँ तुम्हारी शान में ... :)

मेरी राजदुलारी सी हो
सुन्दर गुडिया प्यारी सी हो
शब्द कोष अब रिक्त हो चला
इस जग में तुम न्यारी सी हो ||

मनभावन परिधान पहनती
गरिमा जिसमें एक झलकती
दिल को बड़ा सुकून मिला है
कीचड में एक कमल खिला है ||

मुस्कान तेरे चेहरे पर छाई
जिसने सारी कथा सुनाई
मर्यादा रिश्तों में देखी ,हाव-भाव शालीन
छू गया अंदाज़ तुम्हारा ,सच कहूँ प्रभलीन........




Monday 10 June 2013

बरखा रानी बरखा रानी









बरखा रानी बरखा रानी 
मत करो अपनी मनमानी 
सता चुके हैं सूरज दादा 
अब लेकर आजाओ पानी 
छुट्टियाँ बीती नानी के घर 
पसीना बहा खूब अंजुली भर 
मंच सज़ा है आओ तो 
आकर मुह दिखलाओ तो 
हर आहट पर इंतज़ार है 
गर्मी से हुए बेज़ार हैं
आओ अपना कद पहचानो 
अपनी एहमियत को जानो 
मंतव्य हमारा पूरा करदो 
सबके मन खुशियों से भर दो 
अभिनन्दन को खड़े तैयार 
बरखा रानी आये तो द्वार

Saturday 8 June 2013

लघु कथा

बात उस दिनों की है जब जंगल हुआ करते थे -------------
कई जानवर ,मरे जानवरों को खाकर वहां की गंदगी हटा देते थे उनमें लोमड़ी और गिद्ध प्रमुख थे 
जंगल रहे नहीं मानव भेष धर गिद्ध और लोमड़ी ने शहर की राह पकड़ी ...
जंगल को साफ़ करने वाले अब समाज को प्रदूषित कर रहे हैं ......

Friday 7 June 2013

पारिजात के पुष्प













छोटे और सुन्दर पारिजात के पुष्प
जन्म लेते ही भारी विपदा से निपटते हैं
भोर की पहली किरण पर झूमते
नत मस्तक हो धरा को चूमते हैं
नियति मान कर्तव्य का मान रख
पारिजात के योद्धा चुनौती को निकलते हैं
बिना सिलवटों के चादर सामान
धरा को ढक अभिमान से ,प्रणेता को तकते हैं
सिर्फ अधिकार नहीं ,दायित्व की भाषा भी खूब समझते हैं
जीवन की आहुति से भी नहीं डरते
जड़ों से कटने का दर्द भी अन्दर ही निगलते हैं ...
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