Friday 31 May 2013

दर्द ....
















नन्हे पौधों को दरख़्त बनते देखा है , 
मैंने रिश्तों को परवान चढ़ते देखा है 

भावनाओ की हरियाली में ,प्यार से सींचे रिश्तों को जिया है  
अपने-पन का अमृत भी पल-पल पिया है 
जब रिश्ते मज़बूत और मज़बूत होते जा रहे थे , 
तब नन्हे पौधे भी अपने पाँव आँगन में पसार रहे थे 
रिश्ते प्यार के धरातल पर मज़बूत नज़र आते थे , 
नन्हे पौधों में भी दरख़्त बनने के आसार नज़र आते थे 

समय ने रिश्तों को मज़बूत डोर में बाँध दिया ,
पौधों ने भी दरखत बन आँगन में छाँव का समां बाँध दिया  
कुछ पंछियों  ने  दरख्तों पर आशियाना  बना लिया और  
उनके कलरव को वहां - वहां  सबने अपना लिया  

समय बीता तो रिश्ते कुछ दूर -दूर होने लगे , 
दिल से तो पास ही थे समय के हाथों  मजबूर होने लगे 
पौधों के भी पत्ते कुछ पीले पड़ने लगे ,, 
पतझड़ आया तो तेज़ी से झड़ने लगे 
पंछी घोंसले उनके  नन्हों से रिक्त होने लगे  

जल्द ही वहां वीराना पाँव पसारने लगा 

रिश्तों में दरके जाने का डर नज़र आने लगा 

दरख्तों  को किसी ने उखाड़  दिया ,,
 एक ही झटके में उन्हें उजाड़ दिया  
पर रिश्तों को दरका न सका   !!!!!!! 
जिस आरी को दरख्त सह न पाया, 
उसका वार रिश्तों पे चल न सका   

नियति के इस खेल को भावनाओ  ने जिता दिया  
आरी के वार से अपनेपन को बचा लिया 
समय ने एक करवट ली और सब छिटक कर दूर हो गए  
शायद बहुत  मजबूर  हो गए  !!!!!
दूर ज़रूर हो गए पर अपने प्यार और संस्कार की बदौलत  
आज भी साथ खड़े नज़र आते हैं 
दरख्तों के कटने पर ज़रूर आंसू बहाते हैं.

पंछियों के  कलरव को याद कर, 
दर्द भरी मुस्कान चेहरे पर ले आते हैं.
पर अपने प्यार भरे बंधन पर आज भी इतराते हैं
और ईश्वर से दुआ मनाते हैं 
कि इन रिश्तों को दरकने से बचाना और  
हे ईश्वर इन्हें यूंही परवान चढ़ाना  
 हे ईश्वर इन्हें यूंही परवान चढ़ाना