तम की चादर ओढ़ सांझ ने ,
धीरे-धीरे पाँव पसारा
आँख मिचौली खेल ज़रा सी ,,
तम उर में छिप गया उजाला
पलकों में सिमटे ख्वाबों ने ,
थोड़ी सी लेकर अंगड़ाई
थोड़ी सी लेकर अंगड़ाई
अभिनन्दन करके निद्रा का,
सीमा अपनी और बढाई
सीमा अपनी और बढाई
समां गए सपने अंखियों में,
पलक लगे ढलके-ढलके
पलक लगे ढलके-ढलके
लोरी भी गा रही ख़ामोशी,,
सहलाती हलके-हलके
सहलाती हलके-हलके